तेरा एक बार संवरना बाकी है
तेरा एक बार संवरना बाकी है
जीवन में संवारती आई हो तुम,
चेहरा तेरा लगता जैसे शाकी है,
बहुत बार संवार चुकी हो प्रिय,
तेरा एक बार संवरना बाकी है।
पैदा हुई जब परिवार ने संवारा,
रूप तेरा हर जन को था प्यारा,
तेरा एक बार संवरना बाकी है,
कह रहा है पागल दिल हमारा।
बड़ी हुई तब बच्ची कहलाई थी,
पोशाक नई नई कई मंगवाई थी,
बचपन में जब तुम संवरती रहती,
दिल में तुम बहुत ही इतराई थी।
मेहमान जब कभी घर में आते,
नई नई पोशाक चुनकर के लाते,
पहनाकर तुम्हें बेहतर से कपड़े,
परियों की कई कहानियां सुनाते।
सजने संवरने का क्रम यूं चला,
मां बाप का मिलता रहा दुलार,
पहन पोशाक रंग बिरंगी तन पे,
भाग दौड़ की नहीं मानी है हार।
युवा अवस्था में जब रखा है पैर,
नहीं जमाने में तब युवा की खैर,
सभी अपने ही तुम्हें लगते रहे हैं,
माना ना तुमने कभी कोई भी गैर।
शादी के दिन जब आये थे तुम्हारे,
क्या रूप जवानी का अंगड़ाई लेता,
सजी धजी थी लाल वस्त्रों में जब,
हर कोई लंबी उम्र की दुहाई देता।
सुहाग के जोड़े में संवरी थी जब,
टप टप आंसू गिर रहे थे मां बाप,
क्या अजब दोनों की जोड़ी लगती,
खुशियों और गम का नहीं था नाप।
फिर तो बैरी बुढ़ापा दे रहा दस्तक,
झुर्रियां पड़ गई थी पूरे ही मस्तक,
पोशाक और वस्त्र अच्छे नहीं लगे,
मौत का भय लगता दे रहा दस्तक।
मौत आएगी अजब-बड़ी सुहानी,
अब ये मौत तुम्हारी ही बाकी है,
बहुत सजाएंगे जब अर्थी निकले,
यूं तेरा एक बार संवरना बाकी है।
वो तेरा एक बार संवरना बाकी है,
हर जन को अंतिम बार सजाते हैं,
कितने नेत्र तुम्हें देखते मिल जाये,
बस गम का दरिया सभी बहाते हैं।