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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract

4.6  

Dhan Pati Singh Kushwaha

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स्वर्ण- सवेरा

स्वर्ण- सवेरा

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हर एक ग़म जीवन का हट जाता है

तम छंटता है- रजनी कितनी हो स्याह।


संयम-धैर्य धार धर और मिल जुलकर,

सतत्-संगठित प्रयत्न दिखाते हैं राह।


जीवन में जटिल समस्याएं जब आती हैं,

एक नया अनुभव -नई सीख दे जाती हैं।


कर अवगत हमको अपनी कुछ त्रुटियों से,

एक स्वर्ण सवेरा- हम सबको ही दे जाती हैं।


नई ऊर्जा -नई शक्ति का जन-जन में होता संचार,

ध्वस्त रूढ़ियां हो जाती हैं-नवाचार का होता प्रसार।


सदा सत्य- सुंदर और शुभ ही- होवे प्रभु सबका संसार,

मिल जुलकर सब रहें जगत में पूर्ण धरा हो एक परिवार।


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