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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Inspirational

ज्योति श्रम की जलानी है

ज्योति श्रम की जलानी है

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कर घोर श्रम बहाएं जलधार,

मुफ्त की रेवड़ियों का तज के विचार।

ज्योति श्रम की जलानी है,

मन में हर इंसान को।

न एक पल भी भुलाना है,

प्यारे भगवान को।


तन बुद्धि और शक्ति,

परमात्मा ने दी है हमको।

सबको लुटाएं खुशियां,

करें दूर सबके ग़म को।

आनंद में हर दम रहें,

न सबसे निज ग़म कहें 

याद रखें हर पल भगवान को।

ज्योति श्रम की जलानी है,

मन में हर इंसान को।

न एक पल भी भुलाना है,

प्यारे भगवान को।


रेवड़ियॉं मुफ्त की,

आलस भी संग लातीं।

आदतें बिगड़ जो जातीं,

नहीं फिर हो ठीक पातीं।

मुफ्त की जब आदत पड़े,

तो सतत् लालच ही बढ़े,

निष्क्रिय कर देती इंसान को।

ज्योति श्रम की जलानी है,

मन में हर इंसान को।

न एक पल भी भुलाना है,

प्यारे भगवान को।


श्रम करें और सिखाएं सबको,

मुफ्तखोरी की आदत से सबको बचाएं।

जो बढ़ाएं आलस हमारा,

तोबा उनसे करते जाएं ।

सतत् श्रम जो करे,

कभी न शर्म श्रम से करे,

प्यार करें ऐसे ही इंसान को।

ज्योति श्रम की जलानी है,

मन में हर इंसान को।

न एक पल भी भुलाना है,

प्यारे भगवान को।


कर घोर श्रम बहाएं जलधार,

मुफ्त की रेवड़ियों का तज के विचार।

ज्योति श्रम की जलानी है,

मन में हर इंसान को।

न एक पल भी भुलाना है,

प्यारे भगवान को।




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