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Vivek Madhukar

Abstract Inspirational

4.8  

Vivek Madhukar

Abstract Inspirational

स्वीकार

स्वीकार

1 min
340


जब स्वीकार कर लेते तुम

मृत्यु अवश्यम्भावी है,

मुक्त हो जाते तुम

लगाने लगते गोते आनंद-सिन्धु में

जीवन ही खुद बन जाता अनंत.


जब स्वीकार कर लेते तुम

अपनी अपूर्णता, अपनी कमियों को,

उदय होता तुम्हारे अन्तस् में सूर्य

करता जो दूर अंधतमस

तुम्हारे संपर्क में आने वाले हर ह्रदय से.


जब स्वीकार कर लेते तुम

अपनी अन्तर्निहित ऊर्जा,

अपने सामर्थ्य को,

बन जाते तुम शक्तिपुंज

प्रगति-चक्र गतिवान हो जाता तब.


जब स्वीकार कर लेते तुम

अपने वातावरण को

उसकी हर अच्छाई और बुराई के साथ,

एकात्म होता उत्पन्न प्रकृति में

आनंदोच्छ्वासित हो उठता धरती का आनन.


जब स्वीकार कर लेते तुम

अपने स्व में अन्तर्स्थित ज्योतिपुंज को

खुल जाते तुम्हारे अंतरचक्षु

मिलन होता तब

आत्मा का परमात्मा से

नर का नारायण से।


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