STORYMIRROR

Shubham Amar Pandey

Abstract

4  

Shubham Amar Pandey

Abstract

कृष्ण अर्जुन संवाद

कृष्ण अर्जुन संवाद

1 min
752

कृष्ण उवाच -

चलो पार्थ धरती पर करके आज भ्रमण हम आते हैं,

मईया-गईया, मथुरा-गोकुल, सबके दर्शन पाते हैं।


एक बार फिर यमुना तीरे वंशी का कोलाहल होगा,

मुख पर जब दधि लेप करूँगा, कितना सुन्दर वह पल होगा।

 

मईया की गोदी में सर रखकर विस्मृत बचपन में जाऊँगा,

अधर नहीं फिर मुरझाएँगे, जीवन के नव रस पाऊँगा।

 

चोरी-चुपके मटकी से जब भी माखन मैं खाऊँगा,

मईया मुझसे पूँछेगी, मैं उनको खूब छाकाऊँगा।


ग्वाले-ग्वालिन, दाऊ के संग, गाय चराने जाऊँगा,

वंशी की किसी मधुर धुन से सबको खूब नाचाऊँगा।

 

कहते-कहते भगवन के लोचन सरिता में डूब गए,

त्रिपुरारी को अधीर देख गांडीवधारी के पसीने छूट गए।

 

बारम्बार अश्रु की धारा अम्बर को थी भिगो रही,

ब्रजवल्लभ के बचपन को स्मृतियों में दिखा रही।

 

अर्जुन उवाच-

मैं असमंजस में हूँ, पालनहार भुवन के स्वामी,

मेरी दुविधा दूर करो, हे माधव ! हे अन्तर्यामी !

 

लोभ, लालसा, मोह, ईर्ष्या, इनको कुबुद्धि का जातक माना जाता है,

आपके ही दिए ज्ञान से मैंने इसको जाना है।

 

पर मोह के माया जाल से नारायण भी न बच पाएँ हैं,

बस एक क्षण स्मरण करने पर नयनों से नीर छलक आए हैं।

 

कृष्ण उवाच -

पार्थ ! नारायण हैं सबसे परे उनमे न कछु व्याप्त,

पर मैं तो हूँ नर रूप में, सो मुझ पर हुआ आघात।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract