शहीद
शहीद
आज छलनी हो गई फिर एक छाती
आज फिर खामोश इक रखवाला हुआ है
आज सीने से बहा है रक्त कितना
हिमशिखर ने रक्त का गौरव छुआ है ॥
जिसकी गोदी में बहुत बालक पले है
वो धरा क्यूं आज पथराई हुई है
चांद सूरज भी जिन्हें माता पुकारे
शोकाकुल वह चुपचाप कोने में खड़ी है ॥
वक्षस्थल पर लहू का
कतरा - कतरा जब गिरा था
धैर्य की उपमा धरा का
वक्ष फटने से रहा था ॥
वार्ता अंतिम समय में
लाल से कुछ हो ना पायी
अनकहे कुछ शब्द अंतिम, सोचकर
कई रातें मां सो ना पायी॥