वर्तमान राजनीति
वर्तमान राजनीति
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हो गया है क्या आज मेरे देश को
पहचान नहीं पाता है अपनों के वेश को
सिंहों की खाल ओढ़े घूम रहे भेड़िए
राख करते जा रहे हैं शांति के परिवेश को
बांटते हैं जाति ,धर्म , रंग, रूप , खान पान
घोलते है मन में जहर बढ़ा रहे द्वेष को
रौंदते है जिंदगी मासूम सी कोई भली
पालते है अपने अंदर सब एक लंकेश को
देखने में लगते है ये अपने हितैषी
और जानते हुए भी हम पालते है जोंक को।।
