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Shubham Amar Pandey

Inspirational

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Shubham Amar Pandey

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अंतर्मन से अंतर्द्वंद्व

अंतर्मन से अंतर्द्वंद्व

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टूटना ना हारना ना 

और कभी रोना ना

पल जो है दो पल का है 

ज़िन्दगी तू खोना ना


रास्तों के शोर है ये 

एक दिन थम जाएंगे

बिन बुलाए ही कभी

बादल बरसने आएंगे


जब अंधेरों की कोई

दीवार तुमको रोकेगी

रोशनी अंतस में भर लो

जुगनू बन के तोड़ेगी


ज़िन्दगी कुछ बर्फ सी

मायूस तुझको जब लगे

मुस्कुरा और आगे बढ़

हिम से ही सदा पानी बहे


जब कभी लहरों के भय से

गति तेरी अवरुद्ध हो

चाल को ही ढाल कर ले

ज़िन्दगी भयमुक्त हो


जब कभी सावन सुहाना

यूं लगे पतझड़ हुआ है

तो समझ लेना कि जीवन ने

नव चेतना का उद्भव छुआ है


जब कभी जीवन से भी 

मन विरक्त होने लगे

मृत्यु के आधीन जब 

मन के सब कोने लगे


जब तुम्हे संसार रूपी नाव

जर्जर दिख रही हो

जब तुम्हे मछली ही जल में 

डूबती सी लग रही हो


जब भ्रमर ही फूल के

अंत का कारण बने

दुष्ट, दंभी और लोभी

मानवता के तारण बने


तब सजग हो ,शांत हो

धैर्य धारण कर सुनो

गीता, मानस , गुरुवाणी को

मुक्ति का मारग चुनो


छोड़कर सब काम तुम

निष्काम पथ पर अब चलो

है समय उत्तम यही अब

जीवन और मृत्यु से आगे बढ़ो


स्वार्थ पथ को त्याग कर

मनुष्यता का पालन करो

देह से बाहर निकल कर

अपने - अपने राम से मिलो।।


  


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