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Indu Kothari

Abstract

4.5  

Indu Kothari

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काला बाजारी

काला बाजारी

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332


सोचा नहीं था हे ईश्वर !

कभी ऐसा भी दिन आयेगा

जब बेकसूर इंसान भी

बे -मौत मारा जायेगा


हर तरफ सन्नाटा पसरा,

अदृश्य वायरस लील रहा

आज मानव ही मानव का

सबसे बड़ा दुश्मन बन बैठा

मौत दहाड़ती गली मुहल्ले


गांव भी पसरा सन्नाटा

बंद हैं सब मंदिर,मस्जिद

गिरिजाघर और गुरूद्वारे

करके जतन पुलिस,डाक्टर

सरकार भी है अब हारी


देख कर ऐसा मौत का मंजर

पसीज गए धरा गगन, पर

पाषाण हृदय इंसान के आगे

आज मानवता भी है हारी

जीवन रक्षक दवाओं की 


जोर पकड़ती काला बाजारी

नहीं पता उसे अगले ही पल

आ सकती है मेरी भी बारी

छीन रहा औरों की सांसें

भर रहा अपनी तिजोरी

हे अज्ञानी मूढमति मानव

कहां ले जायेगा, यह माया

बच्चों के सर से उठ चुका

आज पिता का साया

बिलख रहे हैं भूखे बच्चे


निढाल पड़ी मां की काया

देखकर ऐसा मंजर मानव

मन तेरा क्यों पिघल न पाया

समेट रहा क्यों दोनों हाथ

पाप भरी यह झूठी मााया।। 


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