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Nirupa Kumari

Abstract

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Nirupa Kumari

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अभिज्ञान

अभिज्ञान

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नहीं मैं किसी प्रियतम की प्रियसी

ना हूं मैं किसी की सखी

नहीं हूं धरती सी संभली

ना हूं कोई महान जननी

ना अबला हूं ना ही सबला हूं


किसी पैमाने में मत ढालो मुझे

इतने सवालों में मत बांधो मुझे

मुझे किसी भी तराज़ू में नहीं तुलना है

मुझे बस उन्मुक्त हो ,

अपनी मनचाही उड़ान उड़ना है


मैं हवा हूं,पानी हूं

समय हूं

मैं,एक अनकही कहानी हूं

जो रोके ना रुकी है

थामे ना थमी है


मुझे किसी रिश्ते नाते में नहीं बंधना है

संसार के तरह से नहीं सजना है

मेरी ना किसी से कोई तुलना है

मुझे ये ज़िन्दगी का सफर 

अपने ही हिसाब से तय करना है


स्वयं की खोज़ में ईश्वर तक पहुंचना है

प्रभु की रचना को

अपनी तरह से रचना है।


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