स्वच्छंद भावनाएं
स्वच्छंद भावनाएं
दिल के असीम
उन्मुक्त गगन में
उड़ती---
पंछियों सी भावनाएँ,
पंख फैलाए---
दूर तलक---
किसी और आकाश की ओर---
बाहें पसारे---
भर लेती हैं----
उड़ान---
और पाकर
न कोई सहारा,
सहसा--- बिखर जाती हैं---
दिल के सायबान में,
सागर की लहरों--
संग आई---
सीपियाँ हों जैसे---
कि,
टूट -टूट जाती हैं,
बिखर- बिखर जाती हैं
दिल के साहिल पर--
कुछ क्षण विश्राम
और
फिर निकल पड़ती है---
किसी नए क्षितिज की
तलाश में,
और
ये मन----इन
स्वच्छंद आफतों को
मुट्ठी में भरकर--
रोकना भी चाहे---
तो, रोक नहीं पाता,
और
भावनाओं की आंधी,
उड़ाए लिए जाती है ,
साथ अपने-
इस मन को---
दूर कहीं दूर---
बहुत दूर।