स्वामी विवेकानंद जी कालजयी बने
स्वामी विवेकानंद जी कालजयी बने


ज़ब अदृश्य पथ पर बढ़ रही थी, जब देश की जवानी ,
लयविहीन हो रही थी, अपने देश दुनिया की कहानी !
पश्चिम की लहर में तेजी से बह रहा था, देश अपना ,
आत्म विस्मृति के भंवर में, फंस रहा था राष्ट्र अपना !
प्रकट हुआ उसी क्षण धर्म संस्कृति का, पीयूष पीकर ,
प्रज्ञा से भारत का गौरव बढ़ाने, ध्येय आया देह लेकर !
हे पूरब के प्रकाशपुंज , तुमने किया प्रकाशित पश्चिम ,
दसों दिशाओं में लहराकर लहराया भारत का परचम !
गौरव स्वाभिमान के धनी रहे, ज्ञान विवेक के राजहंस ,
राष्ट्र का मान बढ़ाया, व संदेश दिया दुनिया को विहंस !
जैसे "नरेंद्र" नाम में छुपा हुआ था, तमसो मा ज्योतिर्गम ,
युरोप या अमेरिका सबको दिखायेंगे, भारत का दम !
अलौकिक ओज के अथाह प्रशांत सिंधु थे विवेकानंद ,
ज्ञान विवेक , संस्कार, संस्कृति, के प्रतीक से थे जयहिंद !
उनकी अकाल मृत्यु से, सबको बड़ा ही आघात हुआ ,
उनके कृत्य-कर्म से भारत का, जग में गौरव गान हुआ !
युवाओं के आदर्श बने, प्रचंड ऊर्जा का निर्वान हुआ ,
स्वामी विवेकानंद का इतिहास में कालजयी नाम हुआ !
उठकर जागे हैं अब नहीं रुकेंगे, लक्ष्य को पाए बिना हम,
कोटि-कोटि नमन करते, आभार मनाते स्वामीजी का हम !