स्वामी भक्ति
स्वामी भक्ति
चित्र सुना रहा मेवाड़ की गौरव गाथा शीश झुका नहीं जिसका
दुश्मन के आगे ,
सिसोदिया राजपूतों ने
जंगलों में रहकर लड़ी थी लड़ाई ,
भूख ,प्यास कभी आड़े न आई
मुग़लों के नाक में दम मचाया
मेवाड़ उनके हाथ न आया ,
उदयसिह द्वितीय से शुरू हुई
मुग़ल मेवाड़ संघर्ष की शुरुआत
राणा प्रताप ने लड़ी लंबी लड़ाई
बेटे अमरसिंह ने कभी पीठ न दिखाई
बचपन बीता अरावली पहाड़ियों संग
बन गए वैसे ही दृढ़ और मजबूत
आठ साल की उम्र से लड़ रहे युद्ध
अपने हाथी को भी बनाया
अपने जैसा बहादुर और चतुर
पिता राणा प्रताप से सीखा यह ज्ञान
मुग़लों के ख़ेमे में हाथी ने
भारी तबाही थी मचाई
पकड़ने उसे हाथियों का
चक्रव्यूह रचना पड़ा भाई
क़ैद जब हुए
मुग़लों ने बहुत प्रयत्न किए
शाही ख़ेमे में शामिल हो जाए
टस से मस न हुए
पलट पलट कर मुख्य द्वार यह देखते
कहीं से कुंवर अमर सिंह आ जाए
साथ अपने वो ले जाए
इंतज़ार करते हुए दे दिए प्राण
अपनी स्वामी भक्ति की दी
अनोखी मिसाल
जन जन करता आज भी याद ॥