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Dr Baman Chandra Dixit

Abstract

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Dr Baman Chandra Dixit

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सवाल या बवाल

सवाल या बवाल

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हर गुलशन का गुल प्यारा क्यों ना लगता,

अगर अपनी बाग़ की कालियां भी प्यारी हैं।।


बता तो दो एक बार ये मगरूर बाग़बान ,

बुझी बहारों का कब मुस्काने की बारी है??


तकलीफें तो तकलीफें हैं अपनी भी पराई भी

दूसरे की दुःख हवा खुद की क्यों भारी है??


आह निकल जाते हवा ज़ोरों से टकराने से 

दूसरे की चीखें क्यों लगती किलकारी है??


पानी भी पत्थर सा चोट कर सकता ज़रूर

जम के ठोस कठोर बर्फ़ बनने की देरी है।।


फूंक कर चराग की लौ बुझाई होगी कभी ,

फूंक कर ज़िंदा रक्खे हम हर एक चिनगारी है।।


शांत तब तक है वो आग अंगीठी के अंदर

मत भड़काओ , उन्हें भी हवाओं से यारी है।।


फ़िर ना कहना कभी तवज़्ज़ो ना दी हमने

मस्ज़िद के पास मकाँ अज़ान से कैसी बैरी है??


मुल्ज़िम सा समझदार वो मुल्ला अगर होता

सारे बाजार ना होता ऐसी किरकिरी है।।


हर बात पर हर किसीको बोलने की आदत नहीं

छोड़ो उंगली उठाना अब खुदको देखने की बारी है।।



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