STORYMIRROR

Dr. Anu Somayajula

Abstract

4  

Dr. Anu Somayajula

Abstract

सूर्य की पहली किरण

सूर्य की पहली किरण

1 min
451

क्षितिज पर छिटकती लाली के सम्मोहन में बंधे

आसमान ने अंधेरे कहा

जाओ, अब कुछ विश्राम करो

रात भर का जागा अंधेरा

दुबक गया आसमान के किसी कोने में।


सूरज की पसली किरण

स्पंदित करती प्रकृति का कण - कण

धरती को उजलाती

कोमल किरण छू लेने को लालायित 

हर चेतन मन।


अलसाई किरण चुनती पर्वत शिखर को

कुछ सुस्ताने को

उठो, शिखर तक उठो

मुझे छू लेने को

आह्वानित करती धरती के चेतन को।


आसान नहीं पर्वत की सपाट सतह पर चढ़ना, 

शिखर को छूना

ठेलता है

पहली किरण के पहले स्पर्म की कल्पना का

अवर्णनीय रोमांच !


शिखर पर पहुंच विजय पताका से

सूर्य की ओर उठते हाथ

भूल जाते हैं अक्सर

संपाति के डैनों में कोई कमी नहीं थी

जलना उनकी नियति रही थी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract