सूर्य की पहली किरण
सूर्य की पहली किरण
क्षितिज पर छिटकती लाली के सम्मोहन में बंधे
आसमान ने अंधेरे कहा
जाओ, अब कुछ विश्राम करो
रात भर का जागा अंधेरा
दुबक गया आसमान के किसी कोने में।
सूरज की पसली किरण
स्पंदित करती प्रकृति का कण - कण
धरती को उजलाती
कोमल किरण छू लेने को लालायित
हर चेतन मन।
अलसाई किरण चुनती पर्वत शिखर को
कुछ सुस्ताने को
उठो, शिखर तक उठो
मुझे छू लेने को
आह्वानित करती धरती के चेतन को।
आसान नहीं पर्वत की सपाट सतह पर चढ़ना,
शिखर को छूना
ठेलता है
पहली किरण के पहले स्पर्म की कल्पना का
अवर्णनीय रोमांच !
शिखर पर पहुंच विजय पताका से
सूर्य की ओर उठते हाथ
भूल जाते हैं अक्सर
संपाति के डैनों में कोई कमी नहीं थी
जलना उनकी नियति रही थी।