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अमृता शुक्ला

Classics

4.5  

अमृता शुक्ला

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सूरज निकलता है चांद ढलता है

सूरज निकलता है चांद ढलता है

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सूरज निकलता है चांद में ढलता है 


दिन - रात का चक्र निरंतर चलता रहता है। 

मौसम किस तरह से रंग बदल जाता है। 

समेटे प्रकृति एक तिलिस्म अपने में 

सूरज निकलता है चांद में ढलता है।


शरद का चंद्रमा बिखेरता है चांदनी।

तारों से टका आंचल लगे है बांधनी। 

शुभ्र, धवल नभ धरा को बाहों में भरता, 

हवाएं भी छ

ेड़े जा रही हैं कोई रागिनी।

नदिया का जल भी रजत सा संवारता है

सूरज निकलता है चांद में ढलता है 


शीत ऋतु कोहरे की चादर ओढ़ जाती है 

फूलों पर सुंदर तितलियाँ झूम इठलातीं

पेड़ पौधों से धूप छन-छन कर झांकतीं 

पंछियों के साथ कोयल भी  चहचहाती    

बर्फ की चादर में पारा कैसे पिघलता 

सूरज निकलता है चांद में ढलता है।


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