सुर्ख़ गुलाबी रंग
सुर्ख़ गुलाबी रंग
उसे हमेशा से ही भाता था
वह सुर्ख गुलाबी रंग
जब भी वह ग़ुलाबी रंग को देखती थी
तब ही उसके भीतर ढेर सारी मधुर स्मृतियाँ
ताज़ा हो जाती थी ...मानो ढेर सारे गुलाब
खिल जाते थे ....दिल के तालाब में ....
उसे गुलाबी रंग महज रंग नहीं लगता था
उसे ग़ुलाबी रंग में मानो सावन सा छलकता था
और मानो वह इंद्रधनुष के नंव रंगों सा झलकता था
जीवन की आपाधापी में ग़ुलाबी रंग सुकून सा लाता था ........
रोजमर्रा की कशमकश से कुछ पल के लिए सही
थोड़ी निज़ात दिलाता था..
वह मानती थी गुलाब सिर्फ़ बागीचे में ही नहीं
चेहरे पर , आँखों पर भी खिल जाते हैं
ये बात और है कि अगर कद्र न हो तो जल्दी
से ही मुरझा भी जाते हैं
वह उम्र के किसी पड़ाव में भी गई ...
उसने पाया कि ....
ग़ुलाबी रंग की परिभाषा नित नई सी हो गई !
कई बार आँखों से आँसुओं सा बरसा मानो सावन !
कई बार आँखों में खुशियों सा चमका मानो यौवन !
कई बार याद आया वह अल्हड़ मदमस्त बालपन !
कई बार स्मृतियों में कौंधा मानो डरावना स्वप्न !!
सच ये गुलाबी रंग ही है जो जीवन में बिखेरे !
उमंग तरंग ...नहीं तो जिंदगी कितनी हो जाए
बेनूर ...कितनी बेरंग !!