सुनो .कभी बस यूँ करना
सुनो .कभी बस यूँ करना
सुनो
कभी तुम बस यूँ करना
पूरा एक दिन, तुम मेरे लिए रखना
सुबह जो गुजरे , वो तुम्हारे तकिये से होके
और शाम तुम अपने , कांधे पे रखना
मैं रेत पे फिर , कोई घर बनाऊं ,और
तुम उसे अपने, आँचल से ढ़कना
मैं बोऊँ कुछ ख्वाब, इन क्यारियों में
और तुम किसी मीठे झरने सा ,उन्हे हर रोज सींचना
मैं बिखरे हुए शब्दों में, कोई बात कह दूँ
तुम उन शब्दों को समेट के, बस मुझे सुन लेना
मैं अपने हाथों की लकीरें ,तुम्हारे हाथों पे रख दूँ
तुम उन लकीरों में फिर, हम दोनो को ढूँडना
फिर चले जाना तुम , अपना एक और दिन लेके
कुछ टिमटिमाती यादों और जगनुओं के बीच
मुझे मेरी रात के साथ ..... छोडके ...फिर से ।