सुनहरी रात और मृगतृष्णा
सुनहरी रात और मृगतृष्णा
सुनहरी रात
एक मृगतृष्णा के समान विफलता
मारिच के अद्भुत
स्वर्ण मृग के रूप से भ्रमित सीता।
और पत्नी प्रेम में
विवश भागते श्रीराम के दिव्य
क़दमों की आहट और
चेहरे पर फैलीं विवशता।
ये सुनहरी रात
एक मृगतृष्णा के समान विफलता।
सत्य की परछाई की
क़दम क़दम पर चेतावनी
और मारिच के अद्भुत
भ्रमजाल की असीम नश्वरता।
एक चीख और
श्रीराम के तीर का उनसे विश्वासघात
असत्य का भारी अंधकार
और सत्य की अक्षमता।
ये सुनहरी रात
एक मृगतृष्णा के समान विफलता।
विकट भाव
तरंगित हो वायु के संग चलायमान
एक जाल का स्पष्टीकरण
और घेराव की चपलता।
अघोषित अनअपेक्षित घटनाक्रम का दुस्साहस
और उमड़ते घुमड़ते
विचारों की उठती प्रबलता।
ये सुनहरी रात
मृगतृष्णा के समान विफलता।
