सुनहरी धूप
सुनहरी धूप
सुनहरी धूप आँचल फैलाए बैठी है,
मन की बात अपनो तक पहुँचाए कहती है।
आँगन का सूनापन मन को इतना कचोट रहा है,
थोड़ा तो सब्र रखो देखो आज मोर भी बोल रहा है।
रिमझिम बारिश का कहीं आग़ाज़ नहीं है,
पर मोर को इस धूप पर विश्वास नहीं है।
उसको लगता है कोई आशा की किरण अभी बाक़ी है,
पर जनाब जीवन की हर पोशाक नहीं ख़ाकी है ।