माँ
माँ
माँ की गोद तब याद आती है , जब
औरों के काम तले अपनी रोटी ठंडी पड़ जाती है ।
लड़ाई कर उसको हमेशा झुकाया है उसके हाथ की रोटी को
हमेशा इधर उधर अनजाने में सरकाया है ।
काम न कर बिस्तर पर मोबाइल खूब चलाया है,
उसको छल कर आज मन बहुत पछताया है।
किताबों में पढ़ा था उम्र ऐसे होती है
पर कोई माँ से जाकर पूछे उसके उसके बिना बेटी अधूरी होती है।
मौक़ा मिलता है तो वो पकवान भी अख़बार में लपेट देती है ,
और तो और अपनी बंद आँखो से भी हमारे दुःख देख लेती है ।
माँ की बात तो निराली होती है ,
उसके हाथों की रोटी के बिना हर थाली अधूरी होती है ।