STORYMIRROR

Jyoti Narang121

Abstract

3  

Jyoti Narang121

Abstract

कौन हूँ मैं

कौन हूँ मैं

1 min
503

कौन हूँ मैं एक बेटी एक पत्नी या एक माँ

जीवन की जद्दोजहद में कहीं खो सी गई हूँ मैं

सुबह आँख खुली तो ज़िम्मेदारियों ने घेर लिया 

पास बैठे बच्चों के आंसुओं ने हाथ से काग़ज़ कलम छिन लिए

ज़रूरत नही है पैसों की ,खुद के लिए 

कमा तो शुरू से रहे थे औरों के लिए

समय ख़राब कहकर बड़ों ने झुकने को कह दिया

ज़रूरत के समय हमसफ़र ने साथ छोड़ दिया

बड़े बड़े वादों को दरकिनार कर काल कोठरी में अकेला छोड़ दिया

कहने को सब है साथ में पर मैं खुद ही नही बची हूँ अपने आप मैं ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract