सुबह और तुम
सुबह और तुम
साथ साथ आये
तुम और सुबह
सुबह चली गयी
तुम रह गये साथ साथ।
मैं,तुम, हम हो गये हैं
एक अदद आदमी की तरह
इन आती जाती अनगिनत
सुबहों के बीच।
सुबह तो निर्भर थी
सूरज की किरणों पर
अपनी रौशनी के लिये,
और तुमने तो रख दिया
एक सूरज ही मेरे अंदर।
नया प्रेम है
तुम्हारा मुझसे मेरा तुमसे।
नया संसार है हमारा,
काश! इस संसार की तरह
ये दुनिया भी होती
जिसमें जीते हैं हम।

