सत्यवती: कारण महाभारत का
सत्यवती: कारण महाभारत का
सत्यवती यह सोचती होगी,
अंत स्वार्थ का क्या होगा,
जिस महल को नींव लोभ थी,
अंत महाभारत ही होगा।
सोचती होगी क्यों मांगा वर,
राजसिंहासन मेरा हो,
युवराज बने महाराज कभी जब,
अंश वो केवल मेरा हो।
क्यों मांगी भीष्म प्रतिज्ञा मैंने,
अंतर्मन में सोचती होगी,
जब भीष्म को प्रण की बेड़ी में,
उस पल को वी कोसती होगी।
विध्वंस महाभारत का मेरे ,
लोभ से ही था शुरू हुआ,
सत्यवती यह सोचती होगी,
क्यों अंत का आरंभ किया।
ना लोभ के वश में होकर,
करती उस दिन चतुराई,
योग्यता को अधिकार जो देती,
ना लड़ते कुल के दो भाई।
सोच-सोच ग्लानि में उसके,
अश्रु निरंतर बहते होंगे,
रणभूमि में जो शीश गिरे,
सब प्रश्न ये उनसे करते होंगे।
अधिकार लिए थे तुमने अब,
क्यों अश्रु बहाती हो देवी,
इस रक्तपात का कारण तुम भी,
अब क्यों पुष्प चढ़ाती हो देवी।
उत्तर ना दे पाती होगी,
पूछे गए उस प्रश्न का,
जानती थी वो भी है कारण,
महाभारत के विध्वंस का।।
