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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

सतत् आनंदित रह सकते हैं

सतत् आनंदित रह सकते हैं

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निजी भी हमारा होता अपना संसार,

सुखी -दुखी होने के अवसर अपार।

जिम्मेदार सोच ही तो हमारी है,

निजी तौर पर हम आप की।

सतत् आनंदित रह सकते हैं,

न जगह किंचित संताप की।


इस जगत में किसी की,

हरगिज़ फुटबॉल तो न बने हम।

तारीफ सुनकर नहीं होवे कुप्पा,

निन्दा हो तो भी कुछ न करें गम।

श्वान सम ही सकल जगत है,

यह सोच ही तो समझदारी है ,

निजी तौर पर हम आप की।

सतत् ही आनंदित रह सकते हैं,

न जगह किंचित संताप की।


अवधि जीवन की चाहे हमारे,

कितनी छोटी या कितनी बड़ी हो।

सुख मिला हो हमें चाहे जितना ,

रही लगी दुखों की चाहे झड़ी हो।

करने को हमको अति सुखी 

या करने को हमें अति ही दुखी,

होंगी वर या सम शाप सी।

सतत् ही आनंदित रह सकते हैं,

न जगह किंचित संताप की।


न ठहरता है समय चक्र जग में,

हालात हर पल बदलने यहाॅं पर।

स्वार्थ व्यवहार बदलता है कुछ का,

अप्रिय लगता तो चिंता रंच न कर।

हो या फिर न हो पसंद,

घटे न पाए मन का आनंद,

परवाह करें न ऐसी घटिया बात की।

सतत् ही आनंदित रह सकते हैं,

न जगह किंचित संताप की।



मौत ही अकाट्य सच है जगत का,

दूजा कुछ भी सुनिश्चित नहीं है।

मृत्यु तो न एक पल भी टलेगी,

कर कर लेंगे उचित यह नहीं है।

अपरिग्रह तो करना ही नहीं,

संग तो जाना कुछ भी नहीं,

कर्म कमाई रह जानी हम आपकी।

सतत् ही आनंदित रह सकते हैं,

न जगह किंचित संताप की।


निजी भी हमारा होता अपना संसार,

सुखी -दुखी होने के अवसर अपार।

जिम्मेदार सोच ही तो हमारी है,

निजी तौर पर हम आप की।

सतत् आनंदित रह सकते हैं,

न जगह किंचित संताप की।


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