सतरहवां दिन
सतरहवां दिन
प्रिय डायरी,
सतरावा दिन सतरावा दिन
आज दिन भर में कुछ चीजें हुई
जो विषय मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं है।
आज उस विषय की किताब हाथ में ली
काफी वक्त के बाद मैने पढने की कोशिश की पर
जैसे ही मेने किताब हाथ में ली आँखों से
आँसू रूकने का नाम ही नहीं ले रहे थे
जैसे तैसे रोक पाई खूद को
दिल मानने को तैयार ही नहीं था आँखें कुछ और
ही कह रही थी फिर सोचा मैम से बात की
बात करके एक चीज तो समझ में आ गई
चाहे कुछ भी हो जाए
उन होने लिया हुआ निर्णय नहीं बदलेगा
पर सच कहूँ अभी मुझे लग रहा है
कहीं मैं ही उनहे साथ देने मे कम ना पड जाऊँ
कठिन है पर असंभव नहीं
थोड़ा वक्त लगेगा पर हो जाएगा।