सृजन से विसर्जन तक
सृजन से विसर्जन तक
जब जन्म लेते है,
चारो ओर महिलाएं होती है।
जब दुनिया से विदा होते है,
तब पुरुषों से घीरे होते है।
प्रकृति ने सृजन का दायित्व,
सौंपा है नारी के हाथ।
जीवन की रक्षा और देखभाल,
पुरूषो के साथ।
दया,क्षमा,प्यार ने,
नारी के ममत्व को निखारा,
दृढ निश्चय और कठोरता ने
पुरूषत्व को उभारा।
ममत्व और पुरूषत्व
सिक्के के दो पहलु
साथ चलेंगें ,साथ ही रहेंगें।
दुनिया चलाने के लिऐ
सिक्के के दोनों पहलु,
जरूरी है।
नये सृजन के लिऐ विसर्जन
भी जरूरी है।