सरायखाना
सरायखाना
पतझड़ में सूखे पत्ते !
जैसे ही झड़ने लगे
वह ठिठकी
वह भी सोचने लगी !
एक दिन यूँ ही
अपनी काया
अपना साया
छोड़ के जाना है
ये दुनिया तो बस एक
सरायखाना है !
फ़िर क्यों हाय हाय
करता ये ज़माना है
इक दिन तो सब कुछ
यहीं रह जाना है
फ़िर क्यों ख्वाहिशों की
नीवं पर
सपनों को सजाना है !
ये संसार तो बस
एक सरायखाना है !