सपनों का बसेरा
सपनों का बसेरा
आज मेरे पापा
बहुत खुश थे
उन्हें मेरे सपनों
का राजकुमार
मिल गया था।
उनके पैर जमीन
में टिक नहीं रहे थे
सुबह से शाम
तक शादी की तैयारी
में इतने व्यस्त रहते
कि खाना दवाइयाँ
सब भूल जाते।
मैं भी ढेरों
सपने सजाये
मायके की देहरी
छोड़ कर अपने
सपनों के बसेरे
में गई,
तो पता चला
सपनों और हकीकत
के बीच के सफर को
जिंदगी कहते हैं,
जो ख्वाबों से
बिल्कुल जुदा होती है,
जब हकीकत से
सामना होता है
पैरों तले जमीन
खिसक जाती है।