सपना हो या ख़्वाब
सपना हो या ख़्वाब
एक बार
बारिश की बूंदों
के पार
देखा था तुम्हें !
पलकों पर तैरते हैं
तुम्हारे ही
ख़्वाब !
हर सांस
में
जीता है
बस
नाम तुम्हारा !
रूह में,
सांसों के दरम्याॅ
ख़्यालों में
तुम ही तुम हो।
मुहब्बत की
हद है ये
इश्क की
गहराई ये
यही तो
होती है
खूबसूरती
जो
साँसो में
समा जाती है।
सपना हो
या
ख्वाब
या
हकीकत
इसी उधेडबुन
मे
जिए जा रहे हैं
हम !

