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Rajnishree Bedi

Drama

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Rajnishree Bedi

Drama

सफर तमाम है

सफर तमाम है

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अनजान सफर, लम्बी डगर,

न संग कोई हमसफ़र।

कैसे कह दूं दिल खोल के,

ठोकर खाता हूँ, रोज़ दरबदर।


कोई नहीं अपना, कोई पराया,

यहाँ निभती है जेब की माया।

अनजान सफर में मिल जाते हैं,

अनजान लोगों की कुछ पल छाया।


कट जाएगा रफ्ता रफ्ता,

जब तक तन में जान है।

जिस दिन थकेगी रूह तानों से,

उस पल सफर तमाम है।


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