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Rajnishree Bedi

Inspirational Others

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Rajnishree Bedi

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कशमकश में नारी

कशमकश में नारी

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नारी की कशमकश

मैं हूँ ...या ...नहीं हूँ


अक्सर ये सवाल कौंधता है मेरे भीतर,

छटपटाता है,

दर्द देता है और पूछता है

कि मुझसे मेरी पहचान।

कहाँ हो तुम?

किसकी हो तुम?

किस लिए हो तुम?

तुम्हारा वजूद क्या है?

तुम्हारा नाम क्या है?

तुम्हारी पहचान क्या है?

आखिर कौन हो तुम?


उत्तर में ......

ढूंढती हूँ खुद को.....

किसी की हवस में,

किसी के स्नेह में,

किसी की जरूरत में,

किसी के लोभ में,

किसी के मतलब में,

किसी के निजी स्वार्थ में,

किसी के आंचल में,

किसी के दिल मे ,

किसी की पवित्र आँखों में,

किसी की वासना भरी नज़रों में।


कहाँ-कहाँ नही रहती मैं,

कितने ठिकाने है मेरे,

पर पहचान फिर भी नहीं??

किसी की बेटी,किसी की बहन,

किसी की पत्नी,किसी की माँ,

किसी की चाहत,किसी की हसरत

और किसी के लिए बोझ।

क्यों नही हूँ मैं सही जगह पर???

सब कुछ पाकर भी रिक्त हूँ ----।

किसी की दुनिया तो किसी की पैर की जूती....

कशमकश में हूँ.... कि मैं हूँ....नही हूँ।


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