"कर्मवीर-किस्मत"
"कर्मवीर-किस्मत"
वो दुनिया में चमकाता है, अपनी किस्मत
जो लगातार कर्म करता है, यहां कमबख्त
जब कर्मवीर करता है, स्व कर्म ज़बरदस्त
तब मुसीबतों का भी निकल आता है, रक्त
दरिया का अक्षु हो जाता है, मीठा शरबत
जब कर्मवीर करता है, यहां परिश्रम सख्त
जब कोई गज चलता है, होकर यहां मस्त
तब व्यर्थ कुत्तों का भौंकना हो जाता, बंद
जब मेहनती बहाता है, पसीना ज़बरदस्त
तब उग आते है, पत्थर ऊपर भी दरख़्त
कर्मवीर की मेहनत में होता है, इतना दम
यह दुनिया होती है, उसके आगे, नतमस्तक
कठिनाइयां को वहां याद आती है, नानी
जहां पर कर्मवीर खड़े हो जाते है, तूफ़ानी
शूलों की वहां खत्म हो जाती है, कहानी
जब फूलों की काम आ जाती है, नादानी
परिश्रम वाले हर समस्या को देते है, शिकस्त
आलसी लोग तो बस देखते ही रहते है, नभ
कर्मवीर बनकर खग, चीर देते है, हर फ़लक
कर्मवीरों से चल रही है, यह दुनिया फ़क़त
वही लोग दुःखों का रोना रोते रहते, हर वक्त
जिनके कर्म होते, उनके जैसे ही अस्त-व्यस्त
पर जो होते है, उदीयमान सूर्य जैसे ही मस्त
वो लोग बदल देते है, अपनी सोई हुई किस्मत
जहां में उनकी ही सहायता करती है, कुदरत
वही लोग अपनी जिंदगी को करते है, उन्नत
जो लोग रोते नहीं है, अपनी इस किस्मत पर
वो स्व कर्म से बदल देते है, आईने की सूरत
गरीब पैदा होना साखी कोई गुनाह नहीं है
कुछ न करना, गरीब ही मर जाना है, दुखद
कर्म कर साखी पूर्ण, कर फिर अपने हर स्वप्न
उड़ान पर से नहीं, हौसलों से होती, कमबख्त
भाग्य से नहीं श्रम से ही बदलती है, किस्मत
तू कर ज़माने में 99 प्रतिशत कठोर मेहनत
ओर रह, बस 1 प्रतिशत भाग्य के भरोसे पर
फिर देख, कैसा न मिलेगा, तुझे अपना लक्ष्य।
