"सूर्योदय और किसान"
"सूर्योदय और किसान"
अरुणोदय का लेकर के सहारा
उठ जाता है,किसान देव हमारा
कर्म देव कहता है,भास्कर को
सूर्य को मानता प्रेरणा सितारा
जैसे चमकती,सूर्योदय किरणें
वैसे दमकती किसान श्रम बूंदे
खेत लगता है,मंदिर से प्यारा
खेत से ही करे,वो तो गुजारा
खेत उसे लगता स्वर्ग की धारा
खेत में घूमता बनकर आवारा
खेत किसान का मित्र,कुंआरा
श्रम से बनाये,खेत हराभरा यारा
जैसे धरा दिखे,हरी चुनर में दारा
किसान तो आदमी है,एक बंजारा
रहता अपनी ख़ुदी का,वो अंगारा
सूर्यास्त साथ जब होता अंधियारा
किसान लौटता,घर और थकाहारा
दिन अस्त साथ,किसान होता मस्त
फिर शक्ति जुटाने लेता नींद सहारा
करे इंतजार,कब हो रवि उजियारा
फिर उठे,चले खेत ओर वीरजारा
श्रम कर,आलस्य बनाता,बेचारा
तेरी जय हो,तू धरा खुदा हमारा
तू गीता के कर्म की पावन धारा।