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Rajnishree Bedi

Tragedy

5.0  

Rajnishree Bedi

Tragedy

बारिश की बूंदे

बारिश की बूंदे

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बारिश की बूंदे जब जब भी,

मेरे अंगना आती है

दर्द दबा जो मेरे भीतर

उसे जगा कर जाती है।


लाल मेरा बिछड़ा था जिस पल,

काले बदरा आए थे

सँग मेरे उनके भी आँसू

रिमझिम रिमझिम आए थे।

कभी ये करती पुलकित सबको,

कभी आक्रोश दिखाती है।

दर्द दबा जो मेरे भीतर,

उसे जगा कर जाती है।


इंतज़ार सावन बरखा का,

हर पल सबको कहता है,

झूलों और मेलों का मौसम

सबके मन को रहता है,

मोर नाचते पंख फैला कर,

कोयल गीत सुनाती है।

दर्द दबा जो मेरे भीतर,

उसे जगा कर जाती है।


खेत खलिहान, और बगिया सारी

अन्न फूलों से सज्जित है।

कर फसलों को तहस- नहस

वो खुद पर कितनी लज्जित है।

बनती टीस किसी जीवन की,

कभी वो बहुत लुभाती है।

दर्द दबा जो मेरे भीतर,

उसे जगा कर जाती है।



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