कड़वा सच
कड़वा सच
तन की शमां किस घड़ी बुझ जाएगी किसको खबर,
मौत कब करले आलिंगन इंसान को करके ज़बर।
व्यवहार ही तेरा तुझे पहचान ये दिलाएगा,
ज़र्रा ज़र्रा होगा दुख में आँसुओं से तर ब तर।
वक़्त का रुख कब बदल जाए ये हमको क्या पता,
मांगें कब और आए कब ये मौत सब है बेखबर।
बचा है थोड़ा वक्त जो खिला ले उसमे फूल हम,
क्या पता कब टूट पड़े हम पर क़यामत का कहर।
ज़िन्दगी का क्या भरोसा,पल में साथ छोड़ दे,
किस जगह और किन हालातों में पड़े पीना ज़हर।
संगीत ये धड़कन का आख़िर एक पल रुक जाएगा,
टूटेगी फिर मद्धम मद्धम ज़िन्दगी की सुंदर बहर।