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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Inspirational

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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Inspirational

नियम नियामक हैंगे व्यापक

नियम नियामक हैंगे व्यापक

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यदि शान्ति सुख चाहो तो मन को विस्थापित करो 

तँन काया इन्द्रिय , तो माया जैसी पीछे पीछे आएगी 


भूल सुधारो समय संवारो सुन्दर सुन्दर भाव निहारो 

कर्म किए जो निस्वार्थ जगत के निर्लिप्तता हो जाएगी 


एक जन्म है एक मरण है इसी बीच सब कुछ करना है 

प्राणी, जगत के तुम हो नियन्ता तेरा अनुभव चिन्हित है 


तन को सीमाओं में बांधो जगत जीतना नामुमकिन है 

बाहु बली बन कर क्या करना आत्म नियन्त्रण सम्भव है


यदि शान्ति सुख चाहो तो मन को विस्थापित करना सीखो 

तँन, काया और इन्द्रिय माया तो पीछे पीछे आ जाएगी 

  

रावण आये कंस भी आये महिषा सुर भी अलख जगाये 

सबने अपने तन से मन की माया के भिन्न भिन्न थे रुप दिखाये 


अन्त हुआ क्या जग जाहिर है - अन्त काल को सगरे पठाये 

ताकत तो बस एक चलेगी , प्रभु का जगत है उसकी चलेगी 


भूल सुधारो समय संवारो सुन्दर सुन्दर भाव निहारो 

कर्म किए जो निस्वार्थ जगत के निर्लिप्तता हो जाएगी 


प्रकृति का रस स्वादन करलो, सुन्दरता से जीवन भरलो 

छोड लडाई , तेरा मेरा , जगत हुआ क्या कभी किसी का 


जोगी जोगन बन मत जाना , चार दिनों का है ये बाना 

शान्त रहो मस्त रहो तुम अपनी अपनी मन में रमों तुम 


यदि शान्ति सुख चाहो तो मन को विस्थापित करना सीखो 

तँन, काया और इन्द्रिय माया तो पीछे पीछे आ जाएगी 

  

भूल सुधारो समय संवारो सुन्दर सुन्दर भाव निहारो 

कर्म किए जो निस्वार्थ जगत के निर्लिप्तता हो जाएगी 

 

एक दिन तो है सबको जाना नही किसी का सदा ठिकाना 

ये बात तो लिख कर के ले लो, देखो भय्या भूल न जाना 


अरुण कहे जग की सखी , अभाय्सी होय सुजान 

काहे को चिन्ता करे हे प्राणी अन्जान हे प्राणी अन्जान ।



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