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ca. Ratan Kumar Agarwala

Inspirational

4  

ca. Ratan Kumar Agarwala

Inspirational

अनुभूति

अनुभूति

2 mins
371


जब भी कभी मैं मंदिर जाता,

कटोरा संभाले वह दिख जाता,

आँखों में एक अजीब सी उदासी,

मंदिर के चबूतरे का स्थायी निवासी,

हर आने जाने वाले की ओर,

टकटकी निगाहों से देखता रहता,

हर आने वाले भक्त को निहारता,

कोई दुवन्नी, कोई चवन्नी चढ़ाता,

कोई यूं ही सामने से चला जाता,

जब भी कभी मैं मंदिर जाता,

कटोरा संभाले वह दिख ही जाता।

 

उस दिन भी मैं गया था मंदिर,

देख उसे हो गया अधीर,

आज उसके कटोरे में कुछ न था,

जाने क्यों कटोरा उल्टा रखा था?

पर आँखों में उदासी न थी,

चेहरे पर नूर झलक रहा था,

मैं पास जाने से रोक न पाया,

जेब में अपने हाथ बढ़ाया,

दस का एक नोट निकाला,

उसे देने के लिए हाथ बढ़ाया,

सहसा उसने रोक लिया,

पास बैठी लड़की की ओर इशारा किया।

 

मैंने नजर घुमा कर देखा,

एक लड़की को सुबकते देखा,

उसकी गोद में कोई बुजुर्ग सोया था,

शायद बीमार पिता होंगे,

मैंने उसकी ओर कदम बढ़ाये,

पास पहुंचकर कदम थम गए,

लोग आ रहे थे,

जा रहे थे,

कटोरे में कुछ डाल रहे थे,

देखा वह बुजुर्ग उसका पिता,

मर चूका था,

जलाने को पैसे न थे,

बाकियों के कटोरे उलटे थे,

आज उसके कटोरे का ही मुँह ऊपर था।

 

माजरा समझ आ गया,

मन में अनोखा अहसास हुआ,

एक अप्रतिम सी अनुभूति हुई,

उन सबकी गरीबी पर गर्व हुआ,

उनके अमीर होने का आभास हुआ,

अपने गरीब होने का अहसास हुआ,

हम तो छोटी बातों पर झगड़ लेते हैं,

उन सबकी तो रोटी का प्रश्न था,

पर सबके कटोरे उलटे रखे थे,

बस उस लड़की का कटोरा भरा था।

 

इंसानियत क्या होती है आज जान लिया,

ईश्वर के दूतों को पहचान लिया,

आज बहुत बौना सा महसूस हो रहा था,

पर मन में बड़ा सुकून हो रहा था,

ज़िन्दगी के खुशनुमा पहलु से,

आज रूबरू हो रहा था,

उन सबके चेहरों पर नूर था,

एक अजीब सा गुरुर था,

उस लड़की की आँखों में गम था,

अपने पिता की मौत का दुःख था,

पर एक अजीब सा संतोष झलक रहा था।

 

अपना सर्वस्व त्याग देना क्या होता है,

उस त्याग का गर्व क्या होता है,

आज पहली बार जाना,

इंसानियत का पैमाना पहचाना,

मेरे हाथ सहसा जेब की ओर गए,

जितने रुपये थे निकाल लिये,

उस लड़की की कटोरी में ज्यादातर डाल दिए,

पास की दुकान में जाकर, खाने का समान ख़रीदा,

उन सब के बीच बाँट दिया कम या ज्यादा।

एक नई उपलब्धि का जोश था,

मन में बड़ा संतोष था।

अमीरी बाँटने में हैं, आज यह सीखा,

बाँटने का सुख करीब से देखा।

 

दुनिया के सबसे अमीर गर्व से बैठे थे,

अमीरी का ढिंढोरा पीटने वाले हम गरीब खड़े थे,

एक अनोखा अहसास लेकर

मैं

ऑफिस की ओर जाने के लिये,

गाड़ी की ओर बढ़ गया,

पर पीछे बहुत कुछ छूट गया,

एक सुखद अनुभूति छोड़े जा रहा था,

आने वाले कल की एक नई अनुभूति की आस लिये….।



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