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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

"नाम स्वाभिमान का"

"नाम स्वाभिमान का"

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जब-जब भी जिक्र होता है, स्वाभिमान का

तब-तब नाम याद आता महाराणा प्रताप का

जिसने छोड़े, महल चौबारे खाई रोटी घास की

पर नहीं झुका, वो ऐसा गिरी था हिंदुस्तान का


आज उन महाराणा प्रताप का जन्मोत्सव है,

जिनको कहते हम हिंदूजा सूरज भारत का

वो शरीर से भले ही दुनिया को छोड़ गये है,  

वीरता, स्वाभिमान की वो मिसाल छोड़ गये,


जिनके आगे छोटा है, नाम बस आसमान का

वो स्वाभिमानी व्यक्ति है, सब हृदय जहान का

हाथ में भाला, आंखों में लिये प्रचंड ज्वाला

वो सूर्य से निकला तेजपुंज था, मेवाड़ का


जिसने सम्पूर्ण प्रजा को अपना पुत्र जैसा माना

वो कहलाता था, दीवान एकलिंग भगवान का

जिसने सेनापति बहलोल को बीच से चीरा,

में तो तुच्छ दास हूं, उस महाराणा प्रताप का


जब-जब भी जिक्र होता है, स्वाभिमान का

तब-तब नाम याद आता, महाराणा प्रताप का

जिसने जातिवाद पर करारा प्रहार किया था

जो दिव्य सवार था, चेतक अश्व महान का


जो प्यारा कूका था, भीलों के सम्मान का

हकीम खां जिसका बहादुर सेनापति था

जो पक्का था, साखी अपनी जुबान का

मर गये तलवार न छूटी, सैनिक था मेवाड़ का


जिसके पास भामाशाह जैसे दानी लोग थे

सारी पूंजी दे, दी पर मान रखा मेवाड़ का

में उस वीर मेवाड़ माटी पर पैदा हुआ हूं,

यह पुण्योदय है, कई जन्मों के तूफान का


सपने में भी अकबर जिससे डरता था

वो ऊंचा-बड़ा नाम है, महाराणा प्रताप का

जिसके गज, रामप्रसाद को झुका न पाया

ऐसा स्वामी था, वो जानवर बेजुबान का


जिनकी मृत्यु पर शत्रु फूट-फुट रोया था,

वो महाराणा प्रताप नाम था, अभिमान का

सुबह जब उठता हूं, प्रताप को याद करता हूं

फिर मेवाड़ की माटी को माथे पर लगाता हूं


वो प्रतीक था, मेवाड़ की आन और शान का

रग-रग में बसा मेरे लहू प्रताप के नाम का

इसलिये सर उठाकर सदा साखी चलता हूं

क्योंकि में तो सेवक हूं, महाराणा प्रताप का



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