सफर सुहाना ज़िन्दगी का
सफर सुहाना ज़िन्दगी का
सफ़र ज़िन्दगी का कितना सुहाना लगता है
इसके ईश्क में हर शख़्स दीवाना लगता है
हर पल ख़ुशी महकती है जिसके आंचल में
मानो बचपन का कोई यार पुराना लगता है
जिसके आने से हसरतों की बरसात होती है
रात के मौन सन्नाटे में चांदनी रात होती है
दिल से दूर चला गया है तो कोई ग़म नहीं
मगर आज़ भी उससे दिल की बात होती है
सफ़र में आज़ कोई हमसफर मिल गया है
आंगन में मुरझाया कोई फूल खिल गया है
बहुत मीठी-मीठी बातें करता है ये मनचला
थमा कर हाथ में अपना टूटा दिल गया है
जिसकी उम्मीद न थी आज़ वही हो गया है
चुपके से चितचोर मेरी बाहों में सो गया है
कोशिश तो बहुत की दिल की कुछ बात करूं
आंखें बंद करके अपनी दुनियाँ में खो गया है
वक्त से पहले पगला जाने की बात करता है
उसकी रोशनी में अंधेरे का साया भी डरता है
जिंदगी का सुहाना सफ़र तो ढल जायेगा कल
मगर कोई है जो आज़ भी उस पर मरता है।