सफलता की पुड़िया
सफलता की पुड़िया
पथरीली सड़कों पर चलना पड़ता है नंगे पांव
सहनी पड़ती है
गर्मी की धूप
सर्दी की छांव
जागना पड़ता है
अंधेरी काली रातों में
रखना पड़ता है
लहजा हिम्मत का बातों में
ओढ़कर रखते हैं
उम्मीदों को दुशाला बना
पिरोकर रखते हैं
आशाओं के फूल सजा
बहने लगता है पैरों से
चलते -चलते लहु
तब जाकर चढ़ते हैं
हम सफलता की सीढ़ियां
तब जाकर चखते हैं
ये सफलता की पुड़िया।