आशीष पाण्डेय

Romance

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आशीष पाण्डेय

Romance

सोचूं उस पर क्या बीतेगी

सोचूं उस पर क्या बीतेगी

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जब से एक झलक देखा हूं

राह वही अपलक देखा हूं

जो हर रोज उसे देखेगा

सोचो उस पर क्या बीतेगी?।।


ठहरो! एक बाण ही काफ़ी

पांच बाण वो न सह पाए

हर दिन एक वार ही करना

पांच वार संग न सह जाए

इन बाणों की चुभन हुई जब

प्राण नहीं वो प्राण खींचेगी।।


बिना मौत के मौत मिलेगी

कभी न उसकी दाल गलेगी

अरे! रोज होगा वो घायल

उसकी कब ये बला टलेगी?।।


मुझ निष्ठुर पर्वत की हालत

तु पिघली हुई तुषार बना दी

उस पिघले का क्या होगा?

जिस पर ये ज्वाला बरसेगी।।


ठहरो! साथ मेरे जो कर दी

और किसी संग अब न करना

मैं तुझ से मारा बैठा हूं

और किसी के प्राण न हरना

एक नज़र में सब कुछ लूटी

रोज देख क्या क्या लूगेगी?।।


तेरे नयन से छुआ गया जब

क्या क्या मुझ पर बीत रही है ?

जो हर रोज छुआ जायेगा

उस पागल पर क्या बीतेगी ?


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