तेरे इश्क की गर्मी
तेरे इश्क की गर्मी
तेरे इश्क की गर्मी से ,मेरा ज़िस्म पिघलता है ,
तेरी साँस में घुल के ,मेरा अंग निखरता है।
वो शर्म ~ओ ~हया के परदे ,ऐसे उठ जाते हैं ,
जैसे मेघ वर्षा के आगे ,बेबस हो जाते हैं।
फटने लगता है एक ज्वालामुखी ,जो रुका था ना जाने कब से ,
ऐसा लावा फूटता है तब ,जो मिलता है सीधा जा नभ से।
मैं धीरे - धीरे तब अपने ,तन को छुपाती हूँ ,
तेरी बाहों में डूब ,समुद्र में गोते लगाती हूँ।
फिर से मिलने का वादा ,आँखों में नए स्वपन ले आता है ,
तेरे इश्क की गर्मी का लुत्फ ,मुझे बहुत भाता है।।