फैलती दरारें !
फैलती दरारें !
दरकने लगी है ये उम्र भी
बदलने लगे हैं अपने भी
गांठें पड़ने लगी है रिश्तों में
उस पर …….
जमने लगी है काई भी
जहां सिवा …….
फिसलन के कुछ नहीं अब
ऐसे में ऐ मेरे हमदम
यूं नज़रें न चुराओ तुम
देखो जरा गौर से -
बढ़ती जा रही है
टूटे दिलों की ये दरारें भी
जो अब नाम भी ….
नहीं लेती भरने का !
इस दरकती उम्र में
सब दरकता जाता है
यहां तक कि आज -
खुद भी खुद से छीज रहा है
कुछ इस कदर कि
फैलती जा रही हैं दरारें !

