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सोचता हूँ

सोचता हूँ

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सोचता हूँ हाल-ए-दिल,

बयां करके देखूँ,

हाल क्या है मेरे दिल का,

उन्हें बता कर तो देखूँ !


सोचता हूँ उनसे नज़रें,

मिला करके देखूँ,

किस कदर बस गए हैं,

वह मेरी नज़रों में,

यह उन्हें जता कर तो देखूँ !


सोचता हूँ अपने दिल को,

आईना बना कर,

उनकी तस्वीर उन्हें अपने दिल में,

दिखा कर तो देखूँ !


सोचता हूँ क्यों न,

एक शुरुआत की जाए,

फेसबुक से ही सही,

उनको आवाज तो दी जाए !


फिर वही सोच कर,

फिर वही सोच कर,

क्या होगा अगर,

वो ना समझे मेरे जज़्बातों को !


सोचता हूँ अपने जज़्बातों को,

सपनों की दुनिया में,

ला कर तो देखूँ !


बस यही, बस यही,

सोचते मेरी रातें गुज़र जाती हैं,

जो आँख लग गई तो,

मेरी महबूबा नज़र आती है,

जो आँख लग गई तो मेरी,

महबूबा नज़र आती है !!


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