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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

सोचकर देखना तुम. .

सोचकर देखना तुम. .

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सोचकर देखना तुम,

हम न सही तो हमारी वफा नजर आयेगी,

तेरे साथ हर पल,

मेरी रुह न सही मेरी आत्मा नजर आयेगी।


उन सांसों को नहीं भूल पाता हूं,

जो मुझे अपने दामन में भर लेती थीं,

वो प्यार की दौलते थीं जो अक्सर,

मुझे अपनी गर्म सांसों में भर लेती थीं।


गुड़िया सी लगती तुम,

जब नजरों में भर जाती थी,

देखते ही देखते तेरी बाहों में,

मेरी हर रात गुजर जाती थी।

समझेगी प्यार मेरा जब ठोकर खायेगी,

होगा दर्द तुझे मेरा तब लौट कर आयेगी।


तू दूर जाकर मेरी जिंदगी से घिना गई है,

तेरे लवों को जबसे हमने सींचा नहीं है,

तू अपने हुश्न से मुरझा गई है,

मेरी नजरों ने जबसे देखा नहीं है।


प्यार में जीना मरना अच्छा है सनम के लिये,

प्यार में मरने से अच्छा जीना है वतन के लिये।

अब डर नहीं लगता कि प्यार‌ में क्या होगा अंजाम,

जीने मरने की समझ नहीं लिखता हूं खुला पैगाम।


जो अपने होकर मांग सजाते हैं खून से,

प्यार में वो कभी दगा नहीं करते भूल से।


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