सोच
सोच
वो मोहब्बत और मोहब्बत करने वाले
दोनों से मेरी, कुछ सोच नहीं मिलती
जिसने मोहब्बत की, हर किसी ने कहा
वफ़ा के बदले वफ़ाएँ नहीं मिलती
वफ़ा की उम्मीद हो तो
मोहब्बत करते ही क्यों हो?
जानते हो जब
कि वो प्यार के लायक नहीं
फिर एतबार करते ही क्यों हो?
न जाने क्यों
ये एतबार इतना ज़रूरी है
ये सच में मर्ज़ी है
या कोई मजबूरी है...
लोग मोहब्बत कर तो लेते हैं
मगर साथ निभा नहीं पाते
साथ मरने की कसमें तो सब खाते हैं
मगर साथ जी नहीं पाते
ये मोहब्बत के धागे
कुछ कच्चे से लगते हैं
यहाँ कुछ लोग झूठे
तो कुछ सच्चे से लगते हैं
क्या ही फायदा मोहब्बत का
जब अपना चैन गंवा बैठो
उस एक शख्स के लिए
अपनी दुनिया लुटा बैठो
मुझे बातें करना पसंद है
और इश्क़, छुपते छुपाते करते हैं सब
ये मोहब्बत भी कहती है
कि उसे सुनने को मेरी,
खामोशी नहीं मिलती
वो मोहब्बत और मोहब्बत करने वाले
दोनों से मेरी, कुछ सोच नहीं मिलती