संवाद
संवाद
तुम उतर गये
नदी की
तलहटी में,
शांत और शांत
एकांतिक सृजन
अंजुली भर,
भीतर समाहित
घूँट-घूँट
निरन्तर प्रवाह,
तरल सरल।।
तुम उतर गये
नदी की
तलहटी में,
शांत और शांत
एकांतिक सृजन
अंजुली भर,
भीतर समाहित
घूँट-घूँट
निरन्तर प्रवाह,
तरल सरल।।