संस्कार
संस्कार
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बदलते ज़माने के साथ
व्यवहार मत बदलना
अपने गहरे विचार मत बदलना
माँ के दिए संस्कार मत बदलना
बाबा का दुलार मत भूलना
सखियों का प्यार मत बिसरना
इस नई पीढ़ी के चकाचौंध में
मौज मस्ती तो बहुत है मगर, सिर्फ अपने लिए
पैसा और समय है पर, खर्च करते हैं अपने लिए
वाणी में मिठास नहीं, लहजे में कोमलता नहीं
धैर्य और संयम का तो दर्शन तक नहीं
इनकी रंगीन दुनिया इनको मुबारक
मुझे मेरी पुरानी सोच और सभ्यता
से बेइंतहा इश्क है
मैं ज़माने के साथ पहनावा तो बदल लूंगी
अपनी संस्कार की लौ बुझने नहीं दूँगी।