स्नो.....
स्नो.....
बरफ के मोती तैरते हुये हवा में आज धरा पर आ रहे हैं।
गगन से धरा तक अपनी चमक बिखेरते हुये आ रहे है।
अभी थी और अभी नहीं हैं जैसी खुशीयों का
अहसास लिये हुये चाँदी की जाली जैसै आ रहे हैं ।
धरा पर बिछ जाने की चाह से, सड़कों पर नरम सफ़ेद बादल बना रहे है ।
काली सूखी झाड़ियों को, बरफ से लाद कर श्रृंगारित कर रहे हैं ।
छत,दिवारों, खिड़की के हर कोने को जगमग कर रहें हैं ।
कभी अकेले कभी झुण्ड मे कोमल श्वेत तारों की बारात बनकर आ रहे हैं ।
चारों ओर ठण्ड,सिहरन है, पर घर में हमें गिलाफ जैसै
ढका हुआ महसूस करा रहे हैं ।
बरफ के मोती तैरते हुये हवा मे आज धरा पर आ रहे हैं ।
